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महावीर इंटरकांटिनेंटल सर्विस ऑर्गेनाइजेशन (मीसो) ने अब तक 41000 से अधिक दिव्यांग व्यक्तियों को स्वरोजगार के अवसर प्रदान किए हैं। यह संगठन मूक-बधिर और अन्य दिव्यांग व्यक्तियों को कौशल विकास और स्वरोजगार के माध्यम से सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। मीसो की इस पहल से समाज में दिव्यांगों के प्रति जागरूकता बढ़ रही है और उनके जीवन को बेहतर बनाने में मदद मिल रही है।

महावीर इंटरकांटिनेंटल सर्विस ऑर्गेनाइजेशन (मीसो) की यह पहल न केवल मूक-बधिर बच्चों के कौशल विकास में सहायक होगी, बल्कि समाज में दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति संवेदनशीलता को भी बढ़ावा देगी। यह शिविर एक महत्वपूर्ण कदम है जो दिव्यांग बच्चों को आत्मनिर्भर और सशक्त बनने का अवसर प्रदान करेगा, साथ ही समाज में उनके लिए एक नई पहचान का मार्ग खोलेगा।

* मीसो द्वारा बच्चों को दिए जाने वाले प्रशिक्षण की मुख्य विधाएं *

नेल आर्ट, ऑर्गेनिक साबुन निर्माण, हेडवॉश तैयार करना, कपड़े की माला बनाना, दीये की बाती मशीन के माध्यम से बनाना और अन्य 75 से अधिक विधाएं

धड़कई गाँव: ``साइलेन्ट विलेज`` की संवेदनशील कहानी

मीसो के महासचिव बीर लोकेश कावड़िया और राजकुमार गोस्वामी ने जम्मू से 260 किलोमीटर दूर स्थित धड़कई गाँव का दौरा किया। यह गाँव विशेष रूप से “साइलेन्ट विलेज” के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यहां अधिकतर लोग मूक-बधिर हैं। धड़कई गाँव का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ प्रत्येक परिवार में कम से कम एक व्यक्ति ऐसा है जो न सुन सकता है और न बोल सकता है।

मीसो का अब तक का योगदान

महावीर इंटरकांटिनेंटल सर्विस ऑर्गेनाइजेशन (मीसो) ने अब तक 41000 से अधिक दिव्यांग व्यक्तियों को स्वरोजगार के अवसर प्रदान किए हैं। यह संगठन मूक-बधिर और अन्य दिव्यांग व्यक्तियों को कौशल विकास और स्वरोजगार के माध्यम से सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। मीसो की इस पहल से समाज में दिव्यांगों के प्रति जागरूकता बढ़ रही है और उनके जीवन को बेहतर बनाने में मदद मिल रही है।